मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगेश्वर श्रीकृष्ण की कर्मस्थली, ऋषियों महर्षियों की पुन्यस्थलि एवं महर्षि दयानंद के चरणों की रज से पावन पुनीत आर्यावृत भारत जिसकी विशाल सीमाए दक्षिण में समुद्र पर्यंत और उत्तर में हिमालय तक फैली हुई है, जो कभी विश्व को नेतृत्व और ज्ञान देता हुआ विश्व गुरु था आज अपनी ही सैकड़ो कमियों से पतन के रास्ते पर जा रहा है कभी उसके अपने निवासी या स्वार्थी राजनीतिज्ञ जो स्वयम के हित को राष्ट्रहित से बड़ा मानते है. आज अमेरिका जैसे देश हमे लोकतंत्र सिखाते है और हम सिखने लग जाते है यह भूलकर की प्रजातंत्र इसी भारत की देन है जब हजारो साल पहले महाराजा भरत ने आर्यावृत की सीमाओ को इतना बढाया की ये देश भारत देश बन गया और महाराजा भरत ने ही प्रजा को अपनी ही संतान मानकर अपने ही नौ पुत्रो के होते हुए भरद्वाज पुत्र मनु को अपना पुत्र मानकर युवराज नियुक्त किया. आज देश के मंत्री भी आरोप होने पर दागी होने पर पड़ नही छोड़ते पैसे देकर संसद में बहुमत जुटाते है. इसी कारण ये हाल हुआ.
क्षेत्रवाद-
क्षेत्रवाद के कारण भारत कई टुकडो में बंट रहा है महाराष्ट्र और तमिलनाडु इस मामले में सबसे ज्यादा बदनाम है लेकिन ऐसा नहीं है की देश के दुसरे राज्य इस बुराई में पीछे है. उत्तराँचल से उत्तराखंड, कलकत्ता से कोलकाता, मद्रास से चेन्नई, बम्बई से मुंबई इन सबके पीछे वही सोच थी. और वो सोच है की भारत से ज्यादा प्यारा अपना राज्य लगा लोगो को, उन्हें छोटे छोटे से राज्यों पर गर्व है लेकिन विशाल शक्तिशाली भारत पर नहीं.
असुरक्षित सीमाए-
क्षेत्रवाद-
क्षेत्रवाद के कारण भारत कई टुकडो में बंट रहा है महाराष्ट्र और तमिलनाडु इस मामले में सबसे ज्यादा बदनाम है लेकिन ऐसा नहीं है की देश के दुसरे राज्य इस बुराई में पीछे है. उत्तराँचल से उत्तराखंड, कलकत्ता से कोलकाता, मद्रास से चेन्नई, बम्बई से मुंबई इन सबके पीछे वही सोच थी. और वो सोच है की भारत से ज्यादा प्यारा अपना राज्य लगा लोगो को, उन्हें छोटे छोटे से राज्यों पर गर्व है लेकिन विशाल शक्तिशाली भारत पर नहीं.
असुरक्षित सीमाए-
पता नहीं क्यों हमारी सरकारे भारत की सीमाओं के प्रति सजग नहीं रहती है, जबकि भूतकाल में पड़ोसियों द्वारा कई-कई बार धोखा हो चूका है. कभी चीन सड़क बना लेता है तो कभी नेपाली बाढ़ पीडितो में से लडकियों को उठा ले जाते है, जब दुसरे लोग हमारी सीमाओं में घुस जाते है तो हम कंहा होते है? हम अपनी ही सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर पाते है जबकि दुश्मन हमारी सीमाओं में आ जाते है. कारगिल और चीन की लड़ाई के पीछे कारण यही रहा है. जब संघ ने काफी समय पहले चीन के मनसूबे बताये तो भी नेहरु ने ध्यान नहीं दिया था जिसका परिणाम इतनी भयंकर हार हुई.
वोटबैंक की राजनीति-
जब वोट बैंक के लालच में फंसे नेताओ को आतंकी बेटे बेटी लगेंगे और आतंकियों की लाशो पर आंशु छलकेंगे तो देश में बम नहीं फूटेंगे तो क्या फूलो की वर्षा होगी. वोट बैंक की राजनीति ने हमेशा ही देश का नाश किया है. छद्दम धर्मनिरपेक्षता की नौटंकी करने वाले नेता भूल जाते है इस देश के लिए कितने ही बलिदान हुए होंगे बस गद्दी चाहिए. फिर चाहे कट्टर हिंदूवादी को क्यों न मजारो या कब्रों पे शीश झुकाना पड़े. धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भले ही सरकार के गलत फैंसलो में साथ देना हो डालो को तो देंगे. जो कहते है प्रधानमंत्री ऐसा हो जो टोपी पहने तो देश को उपराष्ट्रपति भी ऐसा चाहिए जो तिलक लगाये और आरती का सम्मान करे.
भाषावाद-
हिंदी के प्रति द्वेष भावना बढ़ाने और भारत को भाषा के आधार पर बाँटने वाले लोगो की सोच के कारण एक बड़ी खाई समाज में पड़ गयी. जिन लोगो को हिंदी पर ऐतराज है उन्हें अंग्रेजी से कोई परेशानी नहीं है उनके बच्चे भी अंग्रेजी माद्ध्यम में शिक्षा प्राप्त करते है क्या इन्हें विदेशो के दलाल कंहे जाए? क्या नहीं जानते राजभाषा का अर्थ संविधान में राष्ट्रभाषा ही है?
साम्प्रदायिकता-
जिस सम्प्रदाय में मातृभूमि के प्रति श्रद्धा ना हो और ना देशभक्ति हो ऐसा मत सम्प्रदाय दुष्टों और गद्दारों का ही हो सकता है. लोग अपने धर्म/सम्प्रदाय को देश से ऊपर देख रहे है जिसका सीधा असर देश की शक्ति पर पड़ रहा है ऐसे लोगो को प्यार से नहीं सख्ती से सीधे किये जाने चाहिए वरना एक दिन बहुत बुरे परिणाम होंगे. हमारे देश में रहने वाले लोग दुसरे देश के प्रति श्रद्धा रखे ये ठीक नहीं इन्हें वन्ही भेज देना चाहिए पडोसी देश में बाढ़ आ जाने पर चंदा मांगने वाले लोग अपने ही देश की भीषण आपदा में दो शब्द भी ना बोल सके.
अक्षम नेतृत्व-
ऐसा नहीं है की भारत कोई छोटा मोटा देश हो या हम शक्तिहीन हो लेकिन अगर आप घोड़े पर लाश को बैठा दोगे तो क्या घोडा दौड़ेगा? भारत भूमि हर क्षेत्र में सक्षम है लेकिन अगर नेतृत्व ही कमजोर हो तो कोई क्या करे? कभी अमेरिका कभी चीन तो कभी पाकिस्तान या इटली (नौसैनिक मामले पर) हमे आँख दिखने लगते है क्योंकि उन्हें पता है देश का नेतृत्व कौन कर रहा है?
कमजोर एवं पिछड़ा शैक्षिक ढांचा-
जब अंग्रेज जंगली थे और उन्होंने अपना पहला स्कुल बनाया था तब भारत भूमि पर हज़ारो विद्यालय और विश्वविद्यालय चल रहे थे. लेकिन अपनी संस्कृति, ज्ञान-विज्ञानं को ना मानकर उनकी नक़ल करी जो अज्ञानी थे लेकिन गुलामी के हजारो सालो ने हमे उनसे काफी पीछे धकेल दिया और आज उनके उलटे नक़्शे कदमो पर चलकर अपने बच्चो को योग शिक्षा के स्थान पर यौन शिक्षा देने की बाते करते है. हम उन्हें गलत इतिहास पढ़ाते की आर्य विदेशी थे या जो जीता वो सिकंदर जबकि इतिहास बताता है की सिकंदर भारत से हारा और उसके सेनापति को अपनी पुत्री एथना से चन्द्रगुप्त मौर्य से शादी करवानी पड़ी थी. जब हमारे देश के बच्चो की शिक्षा की नीव ही कमजोर होगी वो क्या देश चलाएंगे जिन्हें अपने गौरवमयी इतिहास का पता ना हो?और ना ही रूचि है उन्हें इतिहास जानने की उनकी नज़र में तो अकबर भी महान है.
तभी राष्ट्रकवि मैथिलि शरण गुप्त जी ने लिखा-
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े
वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा
संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में
वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे