Friday, 13 September 2013

कमजोर पड़ता लोकतंत्र और जन आन्दोलनो से उठता विश्वाश

कांग्रेस के घोटालो, अकर्मण्यता, विफलताओ और अव्यवस्थाओ से देश उब चूका था और उम्मीद भी छोड़ चूका था कि कुछ अच्छा होगा देश में, और अन्य राजनितिक दलों या संस्थाओ से भी विश्वाश समाप्त हो चूका था. एक तरफ होते घोटाले और उनका पर्दाफाश तो देखते रहे सभी मूक होकर किन्तु कोई उम्म्मीद नहीं लगा राखी थी किसी से. ऐसे में कंही से छोटी सी चिंगारी अन्ना और बाबा रामदेव के रूप में दिखी परन्तु अगर परदे के पीछे से देखे तो पत्रकारिता बाबा के साथ नहीं लग रही थी. अन्ना को बाबा का साथ मिला नयी पहचान मिली और अन्ना और उनकी मण्डली का चेहरा भारत में भ्रष्टाचार के खिलाफ नयी पहचान के रूप में आया.
अन्ना ने दिल्ली में जो आन्दोलन चलाया जो मात्र लोकपाल तक सीमित था उसमे लोगो का इतना बड़ा हुजूम और लाखो उम्मीद उमड़ी जिससे सरकार को भी भय हुआ हर तरफ अन्ना अन्ना ही दिखाई दिया. उस आन्दोलन में जितने लोग पहुंचे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक के लोग आये. अन्ना ये समझते थे कि हर कोई जानता था कि लोकपाल क्या है या लोकपाल के समर्थक आये है, लेकिन ऐसा नहीं था बहुत ही कम लोग आये थे जो जानते होंगे कि लोकपाल क्या है? वास्तव में लोग तो कोंग्रेस के खिलाफ गए जो भ्रष्टाचार और अव्यवस्था से परेशान थे, बहुत से संघ और भाजपा दुआरा आये और संघ ने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी कि कांग्रेस का चेहरा सामने आये और अन्ना सफल हो. पता नहीं अन्ना जानते थे या नहीं लेकिन अन्ना बाद में ज़रूर समझ गए थे कि संघ के लोग भी है इसमें.
वो आशंकित थे श्रेय से...... कि संघ जन आन्दोलन का श्रेय न ले ले.
अन्ना को भ्रम था कि ये सब उनके लिए आ रहे है, लेकिन ऐसा नहीं था. इधर धीरे-धीरे अन्ना के अनशन के दिन बढ़ रहे थे और तबियत गिर रही थी. और उधर सरकार भी मानने को तैयार नहीं हो रही थी. कोई बीच का रास्ता भी नहीं दिख रहा था अगर अन्ना झुके या सरकार दोनों तरफ से जनता पर गलत सन्देश जाता.

पहली मांग थी : सरकार अपना कमजो बिल वापस ले.नतीजा : सरकार ने बिल वापस नहीं लिया.दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल िल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये.नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं कियाअन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भीइसका कोई जिक्र तक नहीं.तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों:नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं कियाअन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भीइसका कोई जिक्र नहीं.चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बि संसद में पास हो.नतीजा : तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक तय नहीं की कि वह बिल कब तकपास करवाएगी.पांचवीं मांग थी : बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए.नतीजा : स्टैंडिंग कमेटी के पास एक के बजाय पांच बिल भेजे गए ैं.छठी मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो.नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया तथा अन्ना को दिए गए समझौते के पत्रमें भी इसका कोई जिक्र तक नहीं.सातवीं मांग : जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 184 के तहत करा कर उसके पक्ष औरविपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाएनतीजा : चर्चा 184 के तहत नहीं हुईना ही वोटिंग हुई.इन सबके अतिरिक्त वे 'तीन अन्य मांगेंजिनका जिक्र सरकारद्वारा आज अन्ना को दिए गए समझौतेके पत्र में किया हैइस प्रकार ह -

(1) 
सिटिज़न चार्टर लागू करना.
(2) 
निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे मे लाना.
(3) 
राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति करना.



तो बताइए इसमें कंहा है जनलोक्पाल ?
अन्ना एवं सभी दलों ने उस दिन देश की पूरी जनता को धोखा दिया.
और अन्ना ने भी कह दिया आधी आज़ादी मिल गई, क्या आज़ादी भी टुकडो में मिलती है भला?
सच तो ये है सभी दल और अन्ना उस समय को किसी तरह टालना चाहते थे. 

अपनी सीमित दुनिया से पर्दा हटाकर देखा,
फैला देश में घना अधकार है,
लूट रहा मुल्क पर सोती जनता और सरकार है.
अकबर मार्ग पर रहकर, औरंगजेब मार्ग बनाते,
लूटेंगे देश को ये उनका पुराना व्यपार है,
धर्मनिरपेक्षता की चादर ओढ़े सैकड़ो राजनितिक गांधी,
किस-किस को मारे गोडसे आज लाचार है,
करता हु आह्वान, करो निश्चय, भरो हुंकार,
नहीं आ पाए आ पाए ऐसी सरकार अगली बार,
मातृभूमि को दे कहते, जिसके कोटि-कोटि उपकार है,
तन-मन-धन तुझ पर न्योछावर,
बोल माँ तुझे क्या स्वीकार है?
आतंकी को सम्मान और संतो का अपमान है,
ऐसी वोटबैंक की राजनीति को धिक्कार है,
चंद सिक्को में जीवन गुजारता गरीब परिवार है,
फिर क्यों शाही थाली की कीमत कई हज़ार है?
आंकड़ो में तो सरकारी गोदाम के खाली भण्डार है,
फिर पूछो कैसे फुले चूहों के पेट का आकार है?
संवेदनहीनता में भूखे मरने को गरीब लाचार है,
लेकिन उसके नेता के गले में करोडो का हार है.
बेटो की हालत पर व्यथित मातृभूमि की पुकार है,
बदलो ये व्यवस्था, इस शर्मनिरपेक्षता का क्या आधार है?

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