Friday, 25 December 2015

आर्य समाज का ही विरोध क्यों?


आजकल इंटरनेट पर कुछ पौराणिकों द्वारा उन पुरानी पुस्तको को डाला जा रहा है, जो कभी आर्य समाज के विरोध में लिखी गयी। आज के समय में केवल हिन्दू समाज में सैकड़ो की संख्या में मत/सम्प्रदाय है। हज़ारो बाबा/माताये है जिनकी स्पष्ट मान्यताये वेद विरुद्ध मत की है। लेकिन आर्य समाज के विरोधियो को केवल आर्य समाज ही दिखाई दिया क्यों? इसका एक ही कारण है, चाहे कितना वैदिक मान्यताओ पर आघात करो, चाहे कितना श्रीराम और श्रीकृष्ण पर लांछन लगा कर बदनाम करो लेकिन पौराणिक मान्यताओ जो पाखंड से भरी है उनका खंडन मत करो। अर्थात कितनी दुकाने खोल लो लेकिन हमारे माल को खराब मत बताओ। आर्य समाज के विरुद्ध लिखने वाले पौराणिक कभी इस्लाम और ईसाइयत को जवाब भी नहीं दे पाये। जब इस्लामी लेखको ने सीता माता और श्रीकृष्ण को चरित्रहीन कहकर बदनाम किया तो एक भी पौराणिक की हिम्मत नहीं हुई की प्रतिउत्तर दे सके। सभी का उत्तर दिया आर्य समाज के धुरंधरों ने। लेकिन आज उन्ही आर्य समाज के शास्त्रार्थ महारथियों को बदनाम किया जा रहा है। मध्वाचार्य, श्रद्धाराम फैलोरी और कालूराम शास्त्री मुस्लिमो से शास्त्रार्थ नहीं करते थे जबकि हिन्दुओ को धर्मांतरण चरम पर था। पंडित गुरुदत्त की  सिद्ध होती प्रतीत हो रही है जब उन्होंने कहा था कि "लोग आज भले ही महर्षि दयानंद की  मानते हो लेकिन २०० वर्षो के बाद लोगो को एहसास होगा महर्षि दयानन्द सही थे।" आज जब वेदो पर गौ हत्या, पशुबलि और बहुदेववाद की बात होती है तो केवल महर्षि दयानन्द के वेद भाष्य से ही प्रमाण दिए जाते है। महर्षि दयानन्द से हमेशा दुरी बनाकर रखने वाले संघ को भी जब वेदो के आक्षेप पर पाञ्चजन्य में कई पृष्ठों का लेख लिखना पड़ा तो केवल महर्षि दयानन्द का वेद भाष्य ही याद आया। संघ के आदर्श पुरुष विवेकानंद है लेकिन उनका कुछ नहीं लिख पाते क्योकि विवेकानंद स्वयं मांसाहरी थे। मैं अपने आसपास के पौराणिक पंडितो को देखता हूँ तो आर्य समाज का विरोध केवल इसी कारण करते है की आर्य समाज श्रम करके रोटी खाना सिखाता है लोगो को ग्रह नक्षत्र का डर दिखाकर नहीं। मैं स्वयं पौराणिक परिवार से था लेकिन मेरे क्षेत्र पर आर्य समाज का प्रभाव था जिस कारण पाखंड और अन्धविश्वास से दूर रहा।सच कहे तो अवतारवाद चलकर पौराणिकों ने अपने पेट भरने का प्रबंध ही किया है। लेकिन इसका फायदा अन्य लोगो ने भी जमकर उठाया।
1- पहले साईं बाबा आये, फिर पंडो ने उन्हें श्रीकृष्ण का अवतार बनाकर पूजना शुरू किया, पौराणिक चुप।
2- फिर स्वयं को साईं का अवतार बताकर सत्यसाईं ने काफी धन सम्पदा अर्जित की, पौराणिक चुप।
3- ब्रह्मकुमारी मत के गुरु ने स्वे को ब्रह्मा बताया और देशभर में अपना मत फैला दिया, पौराणिक चुप
4- रामपाल ने पुराण, वेद और हिंदू धर्म को ही पंगु बना दिया और स्वयं को कबीर का अवतार बता दिया, पौराणिक चुप।
5- निर्मला माता आई उनके पैरो पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर पूजा गया, पौराणिक चुप।
6 - एक सदानन्द गुरु आये वो स्वे को कलियुग में विष्णु का अवतार घोषित कर पुजवा रहे है, पौराणिक चुप
ऐसे सैकड़ो उदाहरण है, जन्हा पौराणिक समाज चुप रहा लेकिन आर्य समाज पर ही कलम चलायी, आर्यवीरो ने प्रतिउत्तर दिया लेकिन आजकल यह झूठ प्रचलित किया जा रहा है की आर्य समाज ने किसी पुस्तक का उत्तर नहीं दिया। अभी तक समाज चुपचाप यही देखता रहता था की पंडित जी ने वेद मंत्रो से मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा कर दी, लेकिन अब पूछना शुरू कर दिया की मृतक शरीर में प्राण क्यों नहीं फूंक सकते? यह जागृति आर्य समाज की देन है जिसका दुःख पौराणिकों को है। स्पष्ट है पौराणिक समाज को केवल अपने पाखण्ड का विरोध दुखता है, भले ही वैदिक मान्यताओ का विरोधी स्वयं को ब्रह्मा, विष्णु, महेश घोषित कर दे उससे उनका कोई लेना-देना नहीं है।

2 comments:

  1. पंडित माधवाचार्य शास्त्री , पंडित कालूराम शास्त्री श्रद्धानंद फेलोरी आदि आर्य समाज का खंडन करते थे।।और जैसे इस्लाम , ईसाइयत हैं वैसे ही आर्य समाज हैं । और शक,हूण,कुषाण, मुगल,यवन,तुर्की ,अंग्रेज़ो सबसे हमारे सनातन धर्मी महान पूर्वज ही लड़े थे , युद्धों में ,, जिन्हे तुम पौराणिक केहते हो।।शास्त्रार्थ ज्ञानियों के साथ किया जाता है।।लुटेरे पिसाच आक्रमनकरियो के साथ नहीं।।

    ReplyDelete
  2. kaluram shastri ka khandan toh aap log kar na sake ulta prashn uthane se pehle unke lagaye akshepon ka toh jawab do

    ReplyDelete