Wednesday, 15 May 2013

सत्यमेव जयते का असत्य


सत्यमेव जयते का असत्य

हमारी गुलाम मानसिकता हमे कब किसका गुलाम बना दे पता नहीं चलता. कभी कभी हम कुछ खलनायकों को भी नायक समझ बैठते है या बना बैठते है बिना सोचे समझे, बिना किसी तर्क के. ऐसे में हम सही करे या गलत लेकिन रेल के डब्बे की तरह किसी मस्तिस्क के गुलाम हो बैठे है. जो बाते हमारे मस्तिष्क या मन में घुमती रहती है लेकिन जब कोई और बोलता है तो समझते है उसी ने शुरुआत की. बल्कि उसने शुरुआत नहीं की उसने सिर्फ पहले बोल दिया.

कुछ ही दिनों पहले प्रदर्शित एक धारावाहिक सत्यमेव जयते को लोगो ने काफी जमकर देखा सराहा जिसमे कई सामाजिक मुद्दों पर कडिया बनायीं गयी. लेकिन उस सत्यमेव जयते के पीछे के असत्य को हर किसी ने नज़रंदाज़ किया. जिसे अपना नायक समझ हम अंधभक्ति कर रहे थे वो खलनायक था, उनका उद्देश्य मात्र पैसा कमाना था भले ही जनभावनाए आहत हो या प्रेरित हो.
इस धारावाहिक के समाप्त होते ही इसकी वेबसाइट पर विज्ञापनों की बाढ़ आ गयी और आज भी चलने का कारण यही है विज्ञापन यानी पैसा. कई चेनलो ने भी दिखाया वंहा से भी पैसा आया. इसकी कुछ कडिया मैं देख पाया जिनके सच मैं बताता हु.

1- एपिसोड- कन्या भ्रूण हत्या.
कन्या भ्रूण हत्या बहुत ही संवेदनशील मुद्दा था, जिसमे लोगो की आँखों में आंसू भी दिखाए. आमिर खान प्रधानमंत्री से भी मिले बताया इससे शो को हिट होने में भी सफलता मिली. लेकिन कुछ ही घंटो बात आमिर कहते है की मैं वालेंटियर नहीं नहीं हु, मेरा काम तो बस मूवी दिखाना है. ये काम तो सरकार और समाज का है. शो में बड़ी बड़ी बात करने वाले फिर रंग बदल गए.
क्या शो चलने और उससे पैसा कमाने की ही जिम्मेदारी है उन लोगो की?
फिर कंहा गए आँखों के आंसू?
आमिर खान ने महिलाओं की बुरी दशा पर बहुत चिंता जताई पर क्या उन्होंने एक बार भी अपने धर्म के लोगो या गुरुओ से बात की? कि महिलाओं का सम्मान करे. जग जाहिर है इस्लाम में महिलाओं को सिर्फ बच्चे पैदा करने कि मशीन कि तरह इस्तेमाल किया जाता है कई इस्लामी देशो में आज भी महिलाए मतदान नहीं करने देते. अबकी बार क्यों नहीं मुल्ला/मौलवी से मिल लेते कि स्त्रियों को भी पुरुषो के सामान अधिकार दे.

2- एपिसोड - विषाक्त भोजन-

इस एपिसोड में जितना हो सका किसानो को बदनाम किया गया और सत्य का सिर्फ एक तरफ का ही चेहरा दिखाया गया. और विषाक्त भोजन के लिए पूर्णत: किसानो को ही दोषी ठहराया इससे शहर की जनता का किसानो के प्रति बहुत गलत नजरिया बन गया की ज़हर खिल रहे है आइये इस पर भी प्रकाश डाले,
यह सही है की किसान कीटनाशको (पेस्टिसाइड) का प्रयोग करते है लेकिन बताया नहीं की अस्सी के दशक में सत्तारूढ़ सरकार ने हरित क्रांति के नाम पर जो ज़हर विदेशो से मंगवाया ये सपने दिखाकर की दोगुना फसल होगी और कीट समाप्त होंगे ये उसी का परिणाम है.
उन्होंने ये नहीं बताया की किसानो को जब बुवाई के लिए बीज बोना होता है तो बीज के साथ सहकारी समितिया/बैंक ज़बरदस्ती 
कीटनाशक भी देती है नहीं तो बीज नहीं मिलेगा और बताया जाता है की खूब अच्छी फसल होगी. उन्होंने नहीं बताया लोगो को आज किसान तो गुलाम है जो विदेशी कम्पनिया चाहती है वो उगाते है और जो चाहते है वो ही खाते है. सिर्फ आधा अधुरा तथ्य जनता के सामने रख दिया. ग्रामीण क्षेत्रो में आज भी किसानो के बच्चो के स्कुल के पाठ्यक्रम में कृषि विज्ञानं के विषय में पढाया जाता है की कीटनाशको का प्रयोग अति आवश्यक है, नहीं तो पैदावार नहीं होगी.
वो कहते है की हमारे शरीर में न्यूनतम मात्रा से बहुत ज्यादा कीटनाशक आ रहे है हमारे विषाक्त भोजन के कारण. पर क्या वो बतायेंगे कितने कीटनाशक खेती की फसल से आये है और कितने कोका कोला पीकर आये है?
जी हाँ जिन कीटनाशको का प्रयोग किसान अपने खेतो में करते है ठीक उन्ही कीटनाशको का प्रयोग कोका कोला कम्पनी भी करती बल्कि किसानो की इस्तेमाल की मात्रा से बहुत ज्यादा.  क्या आमिर खान ने एक बार भी कहा अपने शो में खेती में तो मज़बूरी से ले रहे है कम से कम कोका कोला में तो न ले हम, पर कंहे कैसे उनका विज्ञापन करके लाखो करोडो भी तो कमाने है. बिना कीटनाशको वाली सब्जिया देखने में उतनी अच्छी नहीं होती है तो उपभोक्ता कीटनाशको वाली सब्जियों को ही महत्व देते है तो बताईये बढ़ावा कौन दे रहा है कीटनाशको को? एक और लोग खुद ही मरने के लिए दुकानों ने कोला जैसा ज़हर ला रहे है तो किसान बदनाम क्यों?
एक भयानक आरोप इन्होने किसानो पर लगाया की किसान अपने लिए अलग और बेचने के लिए अलग फसल लगाते है, लेकिन ऐसा नहीं है वो जो अपने घर क आंगन में जगह होती है वो उसमे थोडा बहुत अपने लिए उग़ा लेते है की खाने का हो जाये जो फसल हम नहीं बोते है ये सोच कर.

क्या अपने लोगो को सलाह दी की कोका कोला ना पिए?
क्या इस बार भी गए सरकार के पास की किसानो को ज़बरदस्ती कीटनाशक ना दे?
अपने किस आधार पर कहा की किसान अपने घर के लिए अलग फसल उगाते है?
क्या अपने बताया की पेप्सी कोला में कितनी मात्र होती है कीटनाशको की?

पर बात ये है भूखे नंगो का साथ कौन दे? अगर दे भी तो प्रचार कंहा से होगा?
सच तो ये है जिसे हम किसान कहते है उसकी आबादी 75 -80 % है इस देश में और उनकी कमाई मात्र 2 की है जबकि 20 -25 वाली आबादी का इनके साथ मिला दे तो सबका 8 हो जाता है तो उनका असल में कितना होगा? ये भी बता देते.
किसानो की पीड़ा को कोई क्या समझ सकेगा भला? किसी ने कितना भावपूर्ण होकर लिखी होगी ये पंक्तिया - "बदहाली से तंग आकर सोचा बेच दूँ ज़मीन को फिर सोचा माँ ही तो है." किसानो का यही लगान आज भी उनसे खेती करवा रहा है.


3 - घरेलु हिंसा- इस विषय पर तो आमिर खान को बोलने का कोई अधिकार नहीं जो इस आधार पर अपनी पत्नी को छोड़ दे की मोटी हो गयी अच्छी नहीं लगती और दूसरी पत्नी रख ले क्या स्त्री को खिलौना या वस्तु की तरह इस्तेमाल करना सही है?

4- विकलांगता - और विकलांगता पर वो क्या बोलेगा जो खुद अपनी पत्नी को मोटापे क कारण छोड़ दे? या कोई उनसे पूछे आपने क्या किया है विकलांगो के लिए?

Tuesday, 14 May 2013

राम ने दिखाई थी जनता की ताकत


राम ने दिखाई थी जनता की ताकत



यदि नेतृत्व में आत्म बल जगाने की क्षमता हो और वह संचित आक्रोश को अपना स्वर दे सके तो आततायी शक्ति भी उसके सामने घुटने टेक देती है!

भगवद गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने दैवीय शक्तियों को प्रकट कर अपना अप्रकर्तिक रूप दिखाया और कौरवो की विशाल सेना का वध संहार कराया जबकि श्री राम ने अपने मानवीय रूप को दिखाकर मानव के जैसे रावण का संहार किया!
रावण का वध राम ने जनकपुरी और अयोध्या के बिना मदद के किया. वो भी साधारण लोगो में आत्म बल जगाकर.
सुग्रीव एक राजा जरुर है लेकिन उसके पास चतुरंगिनी सेना नहीं न ही कवच वाले रथ है. सुग्रीव की सेना का निर्माण पिछड़ी जातियों के लोगो से हुआ है!

वस्तुत: यह सैन्य संघर्ष नहीं जन सामान्य का आन्दोलन मात्र ही है!
राक्षसों के खिलाफ युद्ध में लड़ने वाले सभी वानर सैनिक नहीं थे. वानर लकडियो से लड़े, पत्थरो से लड़े, दांतों से लड़े जबकि युद्ध हथियारों से लड़ा जाता है.
यानी राम की सेना में और रावण की सेना में बहुत बड़ी असामान्यता थी.
राक्षसों का वह साम्राज्य अति धनवान, बलशाली, सुविधोयुक्त और संगठित सेना वाला था. तब भी राम की सेना लड़ने चल दी यह जोश राम ने उस साधारण जनमानस में भर दिया.
ऐसा क्या था जो वानर और साधारण लोग उस विशालकाय साम्राज्य के खिलाफ उठ खड़े हुए?

वास्तव में राक्षसों और रावण में ऋषि मुनियों को ही नहीं साधारण लोगो पर भी अत्याचार किया होगा. उन्होंने आम लोगो को भी पीड़ित किया होगा तभी वो अन्याय के इस युद्ध में राम के साथ उठ खड़े हुए. आखिर ऋषि मुनि भी तो सामान्य और सज्जन लोगो के बौद्धिक प्रतिक थे. उनपर अत्याचार इस तरह किये की वो कभी अपना अधिकार मांग न सके.
सुग्रीव ने सैनिको का ही नहीं वरन आम नागरिको का भी अधिकारों का आह्वान किया तभी तो बिना कुछ तौले वानर चल पड़े.

राम ने साधारण जनमानस के ह्रदय में संचित आक्रोश को अपना स्वर दिया और आम जनता का आत्म बल जगाया जिससे वो अन्याय के खिलाफ उठ खड़े हो


दशहरा रावण दहन शोर हर और है,
जलता हर साल रावण,
फिर क्यों बुराई पाप हर ओर है?
अपह्रत होती सीता, घायल जटायु लाचार है,
आज फिर राम रावण युद्ध की दरकार है,
रावण बड़ा मायावी, राम छला जा रहा है,
पुतला जल जाता असली रावण कंही ओर है,
लंका नहीं रावण का ठिकाना, कंही ओर है,
बस बैठा लोगो के दिलो में,
पर इस बात को जानता कौन है?
नाम के पीछे जाती क बड़े बड़े नाम है,
शराब, शवाब और कबाब में जिनकी हर शाम है,
राम रावण में अबकी बार निर्णायक जंग हो,
बुराई पाप सही रावण का अंत हो,
पुतले का नहीं, दिल ओ दिमाग से रावण का अंत हो,
ना पनपे बुराई दोबारा, ऐसी धनुष की टंकार हो,
नारी सशक्त, सुरक्षित और सम्मान की पात्र हो.

हिन्दू कौन आर्य कौन?


” गर्व  से  कहो  से  हम  हिन्दू  है  “, ऐसा  कहने  वालो  को  क्या  इस  बात  का  गर्व  है  की  हम  आठ  सौ  वर्ष  गुलाम  रहे ? क्या  इस  बात  का  गर्व  है  की  इस  धर्म  का  कोई  प्रवर्तक  नहीं ? क्या  इस  बात  का  गर्व  है  की  इस  धर्म  का  कोई  धार्मिक  साहित्य  नहीं ? क्या  इस  बात  का  गर्व  है  की  हम  सर्वव्यापक  प्रभु  की  उपासना  के  साथ  – साथ  अनेक  देवी  देवताओ  की  पूजा  करते  है ? क्या  इस  बात  का  गर्व  है  बिना  सोचे  समझे  अंधी  नक़ल  करते  है ?  क्या  हम  इस  बात  का  गर्व  करते  है  की  हम  अपने  पूर्वज  भगवन  राम  का  मंदिर  बनाने  के  लिए  बलिदान  देने  के  लिए  तैयार  है  जबकि  स्वयं  भगवान  रामचंद्र  आर्य  थे , और  हम  ‘हिन्दू’? क्या  हमे  इस  बात  का  भी  गर्व  करते  है  की  गुलामी  के  काल  में  हमको  महर्षि  दयानंद  ने  जगाया  की  हमारे  सनातन  धर्म  और  आर्य  जाति  का  पतन  हो  रहा  है , और  कहा  हम  हिन्दू  नहीं  आर्य  है  फिर  भी  हमने  उनकी  शिक्षाओ  पर  ध्यान  नहीं  दिया ? हमारा  देश  २६  जनवरी  १९५०  को  संप्रभु  सत्ता  संपन्न  स्वतंत्र  राष्ट्र  घोषित  हो  गया  था , परन्तु  हम  हिन्दू  ही  बने  रहे , क्या  यही  गर्व  की  बात  है ?
हिन्दू  नाम  -
भारत  पर  कुछ  ही  आक्रमण  हुए  जैसे  शक , हून और  मंगोल  इत्यादि , भारतीय  रजा  जब  जीते  तो  कोई  नाम  परिवर्तन  नहीं  हुआ  परन्तु  जब  विदेशी  आक्रान्ता  जीते  तो  देश  और  निवासियों  के  नामो  में  परिवर्तन  हुआ . जब  अंग्रेज  आये  तो  उन्होंने  देश  को  इंडिया  कहा  और  देशवाशियो  को  इंडियन , इसी  तरह  मुगलों  ने  भी  हिन्दुस्तान  और  हिन्दू  नाम  दिया . जब  चक्रवर्ती  महाराजा  भरत ने  इस  देश  को  १  ध्वज  के  नीचे  लाकर  खड़ा  किया  तो  नाम  हुआ  भारत  और  हम  बने  भारतीय . जिस  प्रकार  से  एक  भजन  में  भी  कहा  गया  है  ” आर्यों  से  भारतीय  बनकर , होकर  हिन्दू  हिंदुस्तान , फिर  वे  हिन्दू  बने  मुसलमान  अलग  ले  गए  पाकिस्तान  “. जो  आया  उसने  अपना  नाम  दिया  सिकंदर  जैसे  लोग  हार  गए  तो  उनका  कोई  दिया  हुआ  नाम  नहीं  है .
गलत  तर्क  -
जो  लोग  गलत  तर्क  देते  है  की  हिन्दू  शब्द  का  उद्गम  सिन्धु  शब्द  से  हुआ  है  ये  गलत  है , भारत  में  गंगा  जैसी  और  भी  पवित्र  नदिया  है  उनके  नाम  पर  क्यों  न  दिया  नाम ? जो  कहते  है  की  मुगलों के शब्दकोष  में  “स”  शब्द  नहीं  था  तो  शेख  सादी  जैसे  नाम  भी  थे . सिन्धु  नदी  का  नाम  आज  भी  सिन्धु  नदी  ही  है  जबकि  वो  भारत  में  नहीं  पकिस्तान  में  है  अब  उसका  नाम  हिन्दू  नदी  क्यों  नहीं  हुआ ? हिन्दू  एक  फारसी  भाषा  का  शब्द  है  जिसका  अर्थ  है  गुलाम . भारत  पर  हमला  करने  वालो  को  ये  देश  अन्न , धन  धान्य  से  भरा  नज़र  आता  था  जिसको  लुटने  का  सपना  लिए  वो  भारत  में  आये . उनका  उद्देश्य  भारत  को  गुलाम  बनाना  और  यंहा  की  धन  सम्पदा  को  लूटना  था . इसीलिए  उन्होंने  नाम  दिया  हिन्दू  और  देश  का  नाम  हिन्दुस्तान . भारत  उस  समय  छोटे  छोटे  टुकड़ो  में  बंटा  हुआ  था  जिसके  कारण  भारत  विदेशी  आक्रंताओ   का  सामना  न  कर  सका .
जो  लोग  तर्क  देते  है  हिन्दू  शब्द  इंदु  शब्द  से  आया  है  तो  इंदु  अर्थार्त  चंद्रमा  तो  पहले  से  है  तब  नाम  आर्य  क्यों  रखा  तब  तो  हिन्दू  या  इंदु  नहीं  था , यह  सिर्फ  सत्य  को  छिपाने  के  लिए  और  कुतर्को  से  खुद  को  सही  साबित  करने  के  लिए  ऐसा  किया  जा  रहा  है . ऐसे  कई  कुतर्क  लोग  देते  है .
हमारे  प्रवर्तक  –
हम  जिन  भगवान्  श्री  राम  और  श्री  कृष्णा  को  पूजते  है  वो  भी  तो  आर्य  थे , क्या  कंही  किसी  ग्रन्थ  में  लिखा  है  हिन्दू  शब्द ? नहीं  प्रत्येक  स्थान  पर  लिखा  है  आर्य  अर्थात  श्रेष्ठ .
हमारे  ग्रंथो  से  –
 वेद , उपनिषद् , रामायण  और  महाभारत  तक  कंही  नहीं  है  हिन्दू  शब्द  क्योंकि  इसका  कोई  अर्थ  ही  नहीं  हमारी  भाषा  में .  फिर  भी  हम  लिहते  है  हिन्दू . वेद  में  भी  लिखा  है , इश्वर  ने  कहा  यह  भूमि  मेने  आर्यों  को  दी . आपस  में  बातो  में  भी  आर्य  पुत्र  और  आर्य  पुत्री  जैसे  शब्दों  से  संबोधन  मिलता  है  हिन्दू  शब्द  से  नहीं .
हमारा  देश  गुलामी  की  जंजीरों  से  मुक्त  हुआ  तो  हमने  अपने  नए  नए  स्वदेशी  कानून  बनाये  सब  कुछ  बदला  लेकिन  यह  हिन्दू  नाम  न  बदला , हम  हिन्दू  ही  रह  गए , जबकि  हमे  वेदों  के  अनुकूल  आर्य  बनना  था  अब  हम  मुक्त  हो  चुके  थे  एक  लम्बी  गुलामी  से .
राष्ट्रीय  स्वयंसेवक  संघ  ने  देश  के  लिए  काफी  कुछ  किया  और  करते  रहते  है , डॉक्टर  हेडगेवार  जी  ने  इस  संगठन  को  गुलामी  के  काल  में  बनाया  और  देश  की  एकता  अखंडता  के  लिए  समर्पित  किया . इनकी  दोनों  प्रार्थनाओ  और  गीतों  में  भी  हिन्दू  शब्द  का  प्रयोग  है  इसे  बदल  देना  चाहिए , जंहा  हिन्दू  भूमि  कहा  है  अगर  वंहा  आर्य  भूमि  हो  तो  सुन्दर  और  अर्थ  वाला  लगेगा , अर्थार्त  श्रेष्ठो  की  भूमि  न  की  गुलामो  की . गलती  उनकी  नहीं  वो  समय  गुलामी  का  था  तब  उतना  ज्ञान  की  भी  कमी  रही , हमारे  ग्रंथो  से  हम  दूर  रहे  लेकिन  अब  समय  आ  गया  है  हमे  स्वयं  को  आर्य  बोलते  हुए  कृण्वन्तो  विश्वं  आर्यम  का  उद्घोष  करना  होगा .
ओउम