सत्यमेव जयते का असत्य
हमारी गुलाम मानसिकता हमे कब किसका गुलाम बना दे पता नहीं चलता. कभी कभी हम कुछ खलनायकों को भी नायक समझ बैठते है या बना बैठते है बिना सोचे समझे, बिना किसी तर्क के. ऐसे में हम सही करे या गलत लेकिन रेल के डब्बे की तरह किसी मस्तिस्क के गुलाम हो बैठे है. जो बाते हमारे मस्तिष्क या मन में घुमती रहती है लेकिन जब कोई और बोलता है तो समझते है उसी ने शुरुआत की. बल्कि उसने शुरुआत नहीं की उसने सिर्फ पहले बोल दिया.
कुछ ही दिनों पहले प्रदर्शित एक धारावाहिक सत्यमेव जयते को लोगो ने काफी जमकर देखा सराहा जिसमे कई सामाजिक मुद्दों पर कडिया बनायीं गयी. लेकिन उस सत्यमेव जयते के पीछे के असत्य को हर किसी ने नज़रंदाज़ किया. जिसे अपना नायक समझ हम अंधभक्ति कर रहे थे वो खलनायक था, उनका उद्देश्य मात्र पैसा कमाना था भले ही जनभावनाए आहत हो या प्रेरित हो.
इस धारावाहिक के समाप्त होते ही इसकी वेबसाइट पर विज्ञापनों की बाढ़ आ गयी और आज भी चलने का कारण यही है विज्ञापन यानी पैसा. कई चेनलो ने भी दिखाया वंहा से भी पैसा आया. इसकी कुछ कडिया मैं देख पाया जिनके सच मैं बताता हु.
1- एपिसोड- कन्या भ्रूण हत्या.
कन्या भ्रूण हत्या बहुत ही संवेदनशील मुद्दा था, जिसमे लोगो की आँखों में आंसू भी दिखाए. आमिर खान प्रधानमंत्री से भी मिले बताया इससे शो को हिट होने में भी सफलता मिली. लेकिन कुछ ही घंटो बात आमिर कहते है की मैं वालेंटियर नहीं नहीं हु, मेरा काम तो बस मूवी दिखाना है. ये काम तो सरकार और समाज का है. शो में बड़ी बड़ी बात करने वाले फिर रंग बदल गए.
क्या शो चलने और उससे पैसा कमाने की ही जिम्मेदारी है उन लोगो की?
फिर कंहा गए आँखों के आंसू?
आमिर खान ने महिलाओं की बुरी दशा पर बहुत चिंता जताई पर क्या उन्होंने एक बार भी अपने धर्म के लोगो या गुरुओ से बात की? कि महिलाओं का सम्मान करे. जग जाहिर है इस्लाम में महिलाओं को सिर्फ बच्चे पैदा करने कि मशीन कि तरह इस्तेमाल किया जाता है कई इस्लामी देशो में आज भी महिलाए मतदान नहीं करने देते. अबकी बार क्यों नहीं मुल्ला/मौलवी से मिल लेते कि स्त्रियों को भी पुरुषो के सामान अधिकार दे.
2- एपिसोड - विषाक्त भोजन-
इस एपिसोड में जितना हो सका किसानो को बदनाम किया गया और सत्य का सिर्फ एक तरफ का ही चेहरा दिखाया गया. और विषाक्त भोजन के लिए पूर्णत: किसानो को ही दोषी ठहराया इससे शहर की जनता का किसानो के प्रति बहुत गलत नजरिया बन गया की ज़हर खिल रहे है आइये इस पर भी प्रकाश डाले,
यह सही है की किसान कीटनाशको (पेस्टिसाइड) का प्रयोग करते है लेकिन बताया नहीं की अस्सी के दशक में सत्तारूढ़ सरकार ने हरित क्रांति के नाम पर जो ज़हर विदेशो से मंगवाया ये सपने दिखाकर की दोगुना फसल होगी और कीट समाप्त होंगे ये उसी का परिणाम है.
उन्होंने ये नहीं बताया की किसानो को जब बुवाई के लिए बीज बोना होता है तो बीज के साथ सहकारी समितिया/बैंक ज़बरदस्ती
कीटनाशक भी देती है नहीं तो बीज नहीं मिलेगा और बताया जाता है की खूब अच्छी फसल होगी. उन्होंने नहीं बताया लोगो को आज किसान तो गुलाम है जो विदेशी कम्पनिया चाहती है वो उगाते है और जो चाहते है वो ही खाते है. सिर्फ आधा अधुरा तथ्य जनता के सामने रख दिया. ग्रामीण क्षेत्रो में आज भी किसानो के बच्चो के स्कुल के पाठ्यक्रम में कृषि विज्ञानं के विषय में पढाया जाता है की कीटनाशको का प्रयोग अति आवश्यक है, नहीं तो पैदावार नहीं होगी.
वो कहते है की हमारे शरीर में न्यूनतम मात्रा से बहुत ज्यादा कीटनाशक आ रहे है हमारे विषाक्त भोजन के कारण. पर क्या वो बतायेंगे कितने कीटनाशक खेती की फसल से आये है और कितने कोका कोला पीकर आये है?
जी हाँ जिन कीटनाशको का प्रयोग किसान अपने खेतो में करते है ठीक उन्ही कीटनाशको का प्रयोग कोका कोला कम्पनी भी करती बल्कि किसानो की इस्तेमाल की मात्रा से बहुत ज्यादा. क्या आमिर खान ने एक बार भी कहा अपने शो में खेती में तो मज़बूरी से ले रहे है कम से कम कोका कोला में तो न ले हम, पर कंहे कैसे उनका विज्ञापन करके लाखो करोडो भी तो कमाने है. बिना कीटनाशको वाली सब्जिया देखने में उतनी अच्छी नहीं होती है तो उपभोक्ता कीटनाशको वाली सब्जियों को ही महत्व देते है तो बताईये बढ़ावा कौन दे रहा है कीटनाशको को? एक और लोग खुद ही मरने के लिए दुकानों ने कोला जैसा ज़हर ला रहे है तो किसान बदनाम क्यों?
एक भयानक आरोप इन्होने किसानो पर लगाया की किसान अपने लिए अलग और बेचने के लिए अलग फसल लगाते है, लेकिन ऐसा नहीं है वो जो अपने घर क आंगन में जगह होती है वो उसमे थोडा बहुत अपने लिए उग़ा लेते है की खाने का हो जाये जो फसल हम नहीं बोते है ये सोच कर.
क्या अपने लोगो को सलाह दी की कोका कोला ना पिए?
क्या इस बार भी गए सरकार के पास की किसानो को ज़बरदस्ती कीटनाशक ना दे?
अपने किस आधार पर कहा की किसान अपने घर के लिए अलग फसल उगाते है?
क्या अपने बताया की पेप्सी कोला में कितनी मात्र होती है कीटनाशको की?
पर बात ये है भूखे नंगो का साथ कौन दे? अगर दे भी तो प्रचार कंहा से होगा?
सच तो ये है जिसे हम किसान कहते है उसकी आबादी 75 -80 % है इस देश में और उनकी कमाई मात्र 2 की है जबकि 20 -25 वाली आबादी का इनके साथ मिला दे तो सबका 8 हो जाता है तो उनका असल में कितना होगा? ये भी बता देते.
किसानो की पीड़ा को कोई क्या समझ सकेगा भला? किसी ने कितना भावपूर्ण होकर लिखी होगी ये पंक्तिया - "बदहाली से तंग आकर सोचा बेच दूँ ज़मीन को फिर सोचा माँ ही तो है." किसानो का यही लगान आज भी उनसे खेती करवा रहा है.
3 - घरेलु हिंसा- इस विषय पर तो आमिर खान को बोलने का कोई अधिकार नहीं जो इस आधार पर अपनी पत्नी को छोड़ दे की मोटी हो गयी अच्छी नहीं लगती और दूसरी पत्नी रख ले क्या स्त्री को खिलौना या वस्तु की तरह इस्तेमाल करना सही है?
4- विकलांगता - और विकलांगता पर वो क्या बोलेगा जो खुद अपनी पत्नी को मोटापे क कारण छोड़ दे? या कोई उनसे पूछे आपने क्या किया है विकलांगो के लिए?
Thought provoking....different perspective.... liked it :-)
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