भारत मेरे लिया माँ-बाप, धर्म या मेरा सर्वस्व है यही मेरा धर्म है यही मेरा कर्म भी.
मेरा मानना है जिस मत या सम्प्रदाय में राष्ट्रप्रेम या राष्ट्र के प्रति सम्मान/नमन का (वन्दे मातरम) का विरोध है उसे छोड़ देना चाहिए जिस मातृभूमि ने हमे जल एना प्राणवायु दी उसी का विरोध? तो वो धर्म/सम्प्रदाय/मत निशाचरों अर्थात राक्षशो का है मनुष्य का नहीं हो सकता उसमे चाहे कोई हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या इसाई या कोई बौद्ध या जैनी.
हमारी जन्म देने वाली माँ के लिए हम कितना करने की सोच रखते है भगवान तुल्य समझते है जबकि उसने हमे मात्र नौ महीने पेट में रखा जबकि ye dharti हमे पूरी उम्र अपने पेट में रखती है फल फुल अन्न देती है हमारा बोझ सहती है फिर इसको नमन करने या कृतज्ञता प्रकट कने में कैसी धार्मिक अड़चन?
अभी कुछ दिन पहले बसपा सांसद ने वन्दे मातरम् का जो अपमान किया वो अशोभनीय और निंदनीय है और राक्षस प्रवर्त्ति का कार्य है जो मातृभूमि का नहीं वो किसी का नहीं ऐसे लोग भरोसे के लायक नहीं होते परन्तु देशप्रेम पर राजनीति और वोट नीति हावी है तो क्या किया जा सकता है? ऐसे लोगो को चुनकर भेजने वाले भी अपराधी हो गए. वो कहते है इस्लाम वन्दे मातरम् बोलने की इजाज़त नहीं देता, कोई उनसे पूछे ऐसा इस्लाम या कुरआन में कंहा लिखा है? बल्कि कुरान या इस्लाम के मुताबिक़ तो लोकतंत्र/चुनाव प्रणाली का विरोध है इसे काफिर प्रणाली कहा गया है तो वो किस आधार पर चुनाव लडे? तब इस्लाम से इजाज़त ली?
चाहे जो हो धर्म तुम्हारा चाहे जो वादी हो ।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके अन्न और पानी का इस काया पर ऋण है,जिस समीर का अतिथि बना यह आवारा जीवन है
जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है,उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है
तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसकी माटी में खेले, तन दर्पण-सा झलका है,उसी देश के लिए तुम्हारा रक्त नहीं छलका है
तवारीख के न्यायालय में तो तुम प्रतिवादी हो । नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके पर्वत खेत घाटियों में अक्षय क्षमता है,जिसकी नदियों की भी हम पर माँ जैसी ममता है
जिसकी गोद भरी रहती है, माटी सदा सुहागिन,ऐसी स्वर्ग सरीखी धरती पीड़ित या हतभागिन ?
तो चाहे तुम रेशम धारो या पहने खादी हो ।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसकी गोद भरी रहती है, माटी सदा सुहागिन,ऐसी स्वर्ग सरीखी धरती पीड़ित या हतभागिन ?
तो चाहे तुम रेशम धारो या पहने खादी हो ।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
जिसके लहराते खेतों की मनहर हरियाली से,रंग-बिरंगे फूल सुसज्जित डाली-डाली से
इस भौतिक दुनिया का भार ह्रदय से उतरा है,उसी धरा को अगर किसी मनहूस नज़र से खतरा है
तो दौलत ने चाहे तुमको हर सुविधा लादी हो ।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
इस भौतिक दुनिया का भार ह्रदय से उतरा है,उसी धरा को अगर किसी मनहूस नज़र से खतरा है
तो दौलत ने चाहे तुमको हर सुविधा लादी हो ।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
अगर देश मर गया तो बोलो जीवित कौन रहेगा?और रहा भी अगर तो उसको जीवित कौन कहेगा?
माँग रही है क़र्ज़ जवानी सौ-सौ सर कट जाएँ,पर दुश्मन के हाथ न माँ के आँचल तक आ पाएँ
जीवन का है अर्थ तभी तक जब तक आज़ादी हो।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
माँग रही है क़र्ज़ जवानी सौ-सौ सर कट जाएँ,पर दुश्मन के हाथ न माँ के आँचल तक आ पाएँ
जीवन का है अर्थ तभी तक जब तक आज़ादी हो।नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
चाहे हो दक्षिण के प्रहरी या हिमगिरी वासी हो, चाहे राजा रंगमहल के हो या सन्यासी हो
चाहे शीश तुम्हारा झुकता हो मस्जिद के आगे,चाहे मंदिर गुरूद्वारे में भक्ति तुम्हारी जागे
भले विचारों में कितना ही अंतर बुनियादी हो। नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
चाहे शीश तुम्हारा झुकता हो मस्जिद के आगे,चाहे मंदिर गुरूद्वारे में भक्ति तुम्हारी जागे
भले विचारों में कितना ही अंतर बुनियादी हो। नहीं जी रहे अगर देश के लिए तो अपराधी हो ।
-डॉक्टर विवेक आर्य
शर शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह से जब गांधारी ने कहा की कुल का नाश हो रहा है और आप भी मृत्यु की ओर जा रहे है तो भीष्म पितामह ने कहा की कुल की ओर मेरी चिंता छोड़ दो ये देखो देश का नाश हो रहा है. मातृभूमि का विभाजन करके हम अपराधी हो गए कोशिश की युद्ध रोकने की लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला अतः यदि कभी भविष्य में ऐसी स्थिति आती है तो रणभूमि में आ जाओ लेकिन मातृभूमि का विभाजन कदापि स्वीकार न करे. इससे कभी भी मैत्री सम्बन्ध नहीं सुधरेंगे. फिर भी इस कथन को भूलकर गाँधी और नेहरु जैसे लोगो ने मिलकर जो मातृभूमि के विभाजन का पाप किया उससे इतिहास और भारत कभी क्षमा नहीं पायेगा शायद, भारत विभाजन मेरी लाश पर होगा ऐसा नाटक भी करते रहे और अन्दर कमरों में मातृभूमि का सौदा भी करते रहे. अमर बलिदानी श्री नाथूराम गोडसे जी ने जो दंड गाँधी को दिया वो भी काफी कम था उनके अपराधो के लिया? आज भी भारत सुखी नहीं है और न पाकिस्तान, और भारत में वेसे ही हालात दोबारा बन गए है तो ऐसे कब तक बंटेगा भारत?
भरा जो नहीं भावो से बहती जिसमे रसधार नहीं,
वो ह्रदय नहीं पत्थर है जिसमे मातृभूमि का प्यार नहीं.
महाभारत युद्ध में जब अर्जुन अपने पितामह पर बाण चला रहे थे तो मोहवश वो बाद भीष्म पितामह का कुछ नहीं कर पा रहे थे तब श्रीकृष्ण ने स्वयम शस्त्र उठा लिया, अर्जुन ये देखकर पैरो में गिर गए आपकी प्रतिज्ञा टूट जाएगी तब श्रीकृष्ण ने कहा मेरी प्रतिज्ञा से बड़ा धर्म है मेरा देश है. इसमें श्रीकृष्ण ने दो-दो सन्देश दिए की अपने देश की रक्षा करना सबसे बड़ा धर्म है जैसे की भीष्म पितामह ने अपने पिता के लिए ली गयी प्रतिज्ञा को ज्यादा महत्वपूर्ण समझा अपनी मातृभूमि को नहीं. उन्होंने शाशक में देश का चेहरा समझा जबकि उन्हें देश में शाशक का चेहरा देखना था. स्वयम भीष्म ने कहा था की कोई प्रतिज्ञा देश से बड़ी नहीं होती मुझे ऐसी प्रतिज्ञा अपने पिता के लिए लेनी हो तो ले सकता हु परन्तु अगर वह राष्ट्रहित के आड़े आती है तो छोड़ देनी चाहिए. मेरी नज़र में मंदिरों में मत्था टेकने से लाख गुना बेहतर है भारत मत की सेवा करना और उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना.
तोड़ता हु मोह का बंधन क्षमा दो,
गाँव मेरे,द्वार,घर.आँगन क्षमा दो,
आज सधे हाथ में तलवार दे दो,
और बांये हाथ में ध्वज को थम दो,
ये सुमन लो ये चमन लो,
नीड का त्रण त्रण समर्पित,
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं मैं.
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